Tuesday, 20 December 2016

                       धरती पर जीवन का आविर्भाव क्यों और कैसे हुआ ?इस विषय पर विश्व के मनीषियों के मत -मतान्तर युगों -युगों से ध्वनित होते रहे हैं । मानव आविर्भाव के पीछे आकस्मिक संयोजन की शक्ति थी या कोई दैवी विधान इस बात को लेकर भी सहस्त्रों ग्रन्थों ,उपग्रन्थों की रचना हुयी है । " माटी " का सम्बन्ध माँ भारती के रजकणों से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।  इसलिये "माटी " भारतीय दर्शन की पक्षधर है और यह मान कर चलती है कि ऊर्ध्वमुखी विकास निरन्तर परमसत्ता की ओर ले जाने का सोद्देश्य प्रयास है । आर्ष मनीषियों नें सौ वर्ष तक स्वस्थ्य रूप से जीनें की मानवीय क्षमता का न केवल उपदेश दिया है बल्कि इस जीवनावधि के लक्ष्य को प्राप्त कर शत -सहस्त्र रूप में इसे व्यवहारिक धरातल पर भी सिद्ध करके दिखाया है । मानव प्रजाति के बेजोड़ शोधकर्ता फ्रांस के महान बुद्धजीवी लेवी स्ट्रास नें पूरे सौ वर्ष जीकर विश्व के समक्ष मानव के शतायु होनें की क्षमता को पूर्ण रूप से चरितार्थ कर दिखाया है । भारत में तो कर्मयोगियों और जितेन्द्रिय महापुरुषों के ऐसे अनगिनत उदाहरण उपस्थित हैं । कृमि -कीटों ,पशु -पक्षियों, सरी -सृपों , जलचरों और नभचरों की भी अपनी -अपनी आयु सीमायें हैं । भूमण्डल भी परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजरता रहता है । जलनिधि ,मरुनिधि बन जाते हैं और पर्वत श्रंखलायें क्षार -क्षार होकर अनेकानेक रूप लेती रहती हैं । शायद विनाश ,नाव श्रष्टि और निरन्तर परिवर्तन का यह क्रम हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाओं पर भी उतनें प्रभावी रूप से लागू होता है जितना कि पदार्थ निर्मित ब्रम्हाण्ड की प्रत्येक वस्तु पर । पदार्थवादियों की द्रष्टि में पदार्थ ही परम सत्ता है और इसलिये वह भले ही असंख्य रूपों में परिवर्तित हो पर उस परिवर्तन में भी उसका अमरत्व निश्चित होता है । हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाओं नें भी जन्म ,विकास और मृत्यु की न जानें कितनी सारणीयां पर की हैं । इसलिये ' माटी " शाश्वत निरन्तरता का दावा नहीं करती पर जिस इच्छाशक्ति से उसका प्रकाशन प्रारम्भ हुआ है वह इच्छाशक्ति अभी तक समुद्र की विक्षोभ भरी लहरियों के बीच अटल लाइट हाउस की तरह अपनें केन्द्र पर स्थित  है । यदि "माटी " के सुधी पाठक अपनें आदर ,विश्वास और ज्ञान की ऊर्जा हमें प्रदान करते रहेंगें तो " माटी " अपनें अस्तित्व की निरन्तरता के लिये नयी जीवन शक्ति लेकर आगे बढ़ती जायेगी । 
                                               शरद ऋतु का आगमन रचनात्मक प्रतिभा के लिये वैचारिक क्षमता के शक्तिमान तत्व प्राकृतिक परिवर्तनों में बिखेर जाता है ऋषियों नें जब जीवेन शरदः शतम की बात कही थी तो सम्भवतः वर्ष का प्रारम्भ भी शरद ऋतु से ही माना जाता होगा । मैथलीशरण जी नें कहा भी तो है कि शीत में ही सत् होता है । " माटी " चाहेगी कि समर्थ रचनाकार अपनी सबल अभिव्यक्तियाँ कलात्मक रूप में संवाँर कर "माटी " में प्रकाशनार्थ भेज कर हमें गौरवान्वित करेंगें । विश्व के इतनें बड़े समुदाय की अभिव्यक्ति का माध्यम होकर भी हिन्दी का कोई शब्द शिल्पी अभी तक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित नहीं कर सका है । अपनी विभिन्न बोलियों को समावेशित करनें  के बाद हिन्दी का स्थान विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली दो -तीन भाषाओं में आ जाता है पर विस्तार के इस अपार वैभव को अभी तक एक अन्यतम छवि के रूप में वह परिवर्तित नहीं कर सकी है । हम जानते हैं कि अनेक कारणों में से भारत की पराधीनता भी इसका एक प्रमुख कारण है पर अब जब  हम एक आर्थिक और सामरिक शक्ति के रूप में विश्व पटल पर उभर कर आ रहे हैं तो हमें हिन्दी के रचना कारों से विश्वस्तरीय रचनाओं की अपेक्षा करनी ही होगी । और इसके लिये चाहिये अध्ययन की विशालता । संस्कृत के अतिरिक्त विश्व की प्रमुख भाषाओं का साहित्यिक परिचय यदि  मूल भाषा के माध्यम से न हो  तो काम से कम अंग्रेजी भाषा के माध्यम से हो । साथ ही रचनाकारों को आधुनिकतम तकनीकी विकास ,सूचना प्रोदयोगकीय और अन्तरिक्ष प्रवेश के मूलभूत सिद्धांतों से भी परिचित होना होगा । जीवन मूल्यों की सनातनता सुनिश्चित करनें के लिये उन्हें सामाजिक अग्निपरीक्षा से निकालकर विश्वस्तरीय मान्यताओं से संयुक्त करना होगा । " माटी " यह विजन अपनें सामनें लेकर चल रही है हम  जानते हैं कि हमारी क्षमतायें सीमित हैं , हमारे साधन सीमित हैं और "माटी " से सम्बन्धित प्रतिभायें भी असीमित नहीं हैं पर अपनी सीमाओं में हम "माटी " के पन्नों पर काल  को चुनौती देनें वाले अक्षर उद्द्गारों को समाहित करनें का अथक प्रयत्न करते रहेंगें । इस दिशा में हमारी प्रतिबद्धता किसी भी सन्देह  से ऊपर है । हाँ हमें चाहिये आपका भरपूर प्यार और यदि आपको आवश्यक जान पड़े तो रचनात्मक सुझाव और समालोचना द्रष्टि । शरद पूर्णिमां में हंसती -खिलखिलाती कपासी चांदनी आप सबके जीवन में उल्लास बिखेरती रहे । " माटी " की झोली में भी चाँदनीं की ये  मिठास भरी खीलें पड़ती रहें यही हमारी कामना है । 

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