Wednesday, 30 November 2016

नारी समानता

                           दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में हाड कपाने वाली सर्दी पड़ रही थी । उस वर्ष सर्दी कुछ ज्यादा ही थी फिर दार्जलिंग तो सर्दी की कठोरता के लिये सारे बंगाल में पर्यायवाची बन गया है । मेरे साथ के लड़के बगल के दो कमरे लेकर अभी तक सोये पड़े थे । हम तीन लोग जो नियन्त्रण के लिये भेजे गये थे एक छोटे कमरे में अलग सोने की व्यवस्था कर पाये थे । उस दिन 10 -11 बजे के बाद दार्जलिंग से काठमाण्डू जाने की योजना थी । 15 के 15 सैलानी छात्र डबल रजाइयों में दुबके पड़े हुये  थे । हम लोग दो -दो कोट पहनें थे फिर भी सर्दी हड्डी -पसली कंपा रही थी । दरअसल हम लोग पंजाब से चलकर दिल्ली होते हुये कलकत्ता फिर दार्जलिंग और फिर काठमांडू के टूर पर थे । हम तीनों नें यह प्रोग्राम बनाया था कि हम तड़के 5, साढ़े पाँच बजे उठकर पहाड़ों की दस मिनट की चढ़ाई के बाद Rising Point पर पहुँच जायेंगे और वहाँ से  उदय होते हुये भाष्कर से स्वर्णमयी बन जाने वाली कंचन जंगा की चोटी पर हजारों फ़ीट नीचे हरी -भरी वादियों का झिलमिलाता नजारा देख लेंगें । दार्जलिंग के  Rising Point पर देश -विदेश के हजारों सैलानी उगते हुये सूरज का नजारा देखनें आते हैं । सैलानियों में अधिकतर विदेशी जोड़े होते हैं । जिस होटल में हम ठहरे थे वहां से तकरीबन 10 मिनट की चढ़ाई के बाद Rising Point समतल प्लेटो था । जब हम कपडे पहन कर तैय्यार हुये और बाहर निकले तो देखा कि ताजी बर्फ चारो ओर फ़ैली हुयी थी । सुबह का यह स्नोफाल रास्तों को फिसलन से भर रहा था । पहाड़ की सकरी पगडण्डी से 10 मिनट की चढ़ाई के बाद Rising Point पर पहुँचना था ।
                                    रात की सर्दी को न झेल पाने के कारण हमारे साथी आत्म चन्द्र  गौड़ को उल्टियां आने लगीं ।  मैनें उनसे कहा कि वे आराम कर लें ताकि 11 बजे तक ठीक हो जाँये और काठमाण्डू का प्रोग्राम बिना रुकावट के पूरा हो सके । (क्रमशः )

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