भारत की शासन व्यवस्था अब अपने संचालन के लिये रूपजीवा नारियों और छवि मस्त सिनेकारों का आश्रय खोजने लगी है । मैनें कहीं पढ़ा था कि फिल्म मुगलेआजम के रिलीज होने के बाद अभिनेता दिलीप कुमार हिन्दी ,उर्दू भाषी क्षेत्रों में सबसे चहेते कलाकार बन गये थे । एक बार संयोगवश उन्हें उसी हवाईजहाज से यात्रा करनी पडी जिसमें प्रथम पँक्ति में भारत के प्रथम प्रधान मन्त्री जवाहर लाल जी यात्रा कर रहे थे । विमान के कर्मचारियों की उदारता और अपनी प्रसिद्ध का लाभ उठाते हुये उन्होंने पण्डित जी से बात करने का सुअवसर पा लिया । अपने को Introduce करते हुये उन्होंने जवाहर लाल जी से कहा वे फिल्म मुगले आजम के नायक दिलीप कुमार हैं । पण्डित जी ने उन्हें बताया कि वे उनसे परिचित नहीं हैं क्योंकि उनकी फिल्मों में अभिरुचि नहीं है । दिलीप कुमार का दैत्याकार गर्व सिकुड़ कर बौना हो गया । उन्हें लगा कि भारत का शीर्षस्थ नेता माटी से जुड़कर कोटि -कोटि जनमानस में आदर का स्थान प्राप्त कर चुका है और उसे चित्रपट के सितारों की पहचान की कोई आवश्यकता नहीं है । अपने युग का कौन फ़िल्मी सितारा होगा जो गांधीजी की चरणों की धूल पर निछावर न हो जाता होगा । आज परिस्तिथियाँ बिल्कुल उलट गयी हैं अब सिने नायकों के सहारे ही राजनीति की नाँव जनता के आक्रोश के भँवर में फंस जाने पर नाटकीयता के साथ निकाली जाती है । अब जया प्रदा और हेमामिलिनी ,गोविन्दा और धर्मेन्द्र जनता के प्रतिनिधि बनकर उभर आये हैं । प्रयास चल रहे हैं कि सभी जाने माने सितारे और तारिकायें इस या उस राजनीतिक पार्टी से जुड़ जायँ और भारत की राजनीति सिनेमायी ड्रामा बनकर हल्के -फुल्के मनोरंजन का माध्यम बन जाय । एक युग था जब सिनेमा के कलाकार जन कल्याणकारी राजनीति के समर्थ संचालक के रूप में सामाजिक स्वीकृति नहीं पाते थे व अधिकतर अस्वस्थ और कभी -कभी स्वस्थ मनोरंजन के अधिकारी बनकर थोड़ी -बहुत प्रशंसा के पात्र हो सकते थे । ऐसा इसलिये है कि सिनेमायी आर्ट बहुरुपियापन का एक नया अन्दाज है और उसमें गहरायी से घुसा हुआ कोई भी व्यक्ति त्याग और बलिदान की सुढृढ़ नींव खड़ा नहीं होता पर अब जब राजनीति का अर्थ ही है हेय हथकण्डों से सत्ता प्राप्ति और छलना के माध्यम से सत्ता का दुरूपयोग तब निश्चय ही सिनेमायी कलाकार ही हमारे कल के नायक होंगें । भारतवर्ष में कोई ओबामा उभरकर आगे आ पायेगा ऐसा दिखायी नहीं पड़ता । अब तो रूपजीवा मॉडल और बाजारीकृत मुकुट धारी सुन्दरियाँ राजनीतिक सत्ता के गलियारों में केन्द्रीय स्थानों की अधिकारी बनती जा रही हैं । कुछ लोग हैं जो इसे एक स्वस्थ और तप पूत परम्परा के रूप में नहीं ले रहे हैं पर उन्हें यह कहकर नकारा जा रहा है कि देश की दो तिहायी जनता तरुण है इसलिये ग्लैमर के बिना राजनैतिक नेतृत्व उभर कर आ ही नहीं सकता । यह बात दूसरी है की दिल्ली राज्य की जनता को शीला दीक्षित की बिना रंगे बालों वाली छवि भा गयी यह एक शुभ लक्षण है कि राजधानी का बहुसंख्यक समाज दादी -नानी की छवि को अभी भी गले से लगाने को तत्पर है । हमारे बहुत से राजनीतिक नेता चिर युवा बने रहना चाहते हैं ।
ऐसा शायद इसलिये भी है कि उन्हें डर रहता है कि यदि वे युवा दिखायी नहीं पड़ेगें तो सच्ची जवानी उन्हें कुर्सी से ढकेल कर नीचे फेक देगी । जो भी हो इतना तो मानना ही पड़ेगा कि यौवन का मायाजाल राजनीति को पूरी तरह अपने चंगुल में ले चुका है । शायद इसीलिये न जाने कितने मिनिस्टर ,विधायक और उच्च पदाधिकारी बलात्कार और यौन उत्पीणन की कानूनी पगडण्डियों में भटक रहे हैं ।' माटी ' शक्ति और यौवन को राष्ट्र की सेवा में समर्पित करने के लिये कटिबद्ध है । हम नहीं चाहते कि शक्ति और यौवन इन्द्रिय विलास और निजी तथा पारिवारिक स्वार्थों के दायरे में फँसकर कलंक की वस्तु बन जाय । जवानी वह है जो राष्ट्र उत्थान के लिये समर्पित हो । सत्ता का उपयोग भारत की हर गाँव की गली -गली में यौवन का आधारभूत सुविधाओं को पहुँचानें में चरितार्थ होना चाहिये । साफ़ -सुथरा रहना अपने में सभ्य होने का एक शुभ लक्षण है पर उससे भी अधिक शुभ लक्षण है अंतर की सादगी और सफायी । साफ़ -सुथरे रहने का मतलब रंगें सियार की ढोंगबाजी नहीं होना चाहिये । आत्म बल से सम्पन्न व्यक्ति इस बात की परवाह नहीं करता है कि उसका चेहरा Photogenic है या नहीं । उसे इस बात की भी चिन्ता नहीं होती कि हर Appearance पर उसे एक नया सूट पहनना है उसे तो बस एक ही रामधुन लगी रहती है भारत की' माटी'और अधिक उर्वर कैसे हो ?गली -गलियारे और अधिक जगमग कैसे हों ?ग्राम पथ राज पथ कैसे बनें और चिन्तामुक्त सुखद परिवाहन व्यवस्था कैसे स्थापित की जाय ? 'माटी ' के किशोर और तरुण पाठकों को इस दिशा में ही सोचकर आगे बढ़ना है । क्या पता उनकी साधना और उनका चिन्तन उन्हें कल के स्वर्णिम प्रभात का अग्रदूत बना दे ।
ऐसा शायद इसलिये भी है कि उन्हें डर रहता है कि यदि वे युवा दिखायी नहीं पड़ेगें तो सच्ची जवानी उन्हें कुर्सी से ढकेल कर नीचे फेक देगी । जो भी हो इतना तो मानना ही पड़ेगा कि यौवन का मायाजाल राजनीति को पूरी तरह अपने चंगुल में ले चुका है । शायद इसीलिये न जाने कितने मिनिस्टर ,विधायक और उच्च पदाधिकारी बलात्कार और यौन उत्पीणन की कानूनी पगडण्डियों में भटक रहे हैं ।' माटी ' शक्ति और यौवन को राष्ट्र की सेवा में समर्पित करने के लिये कटिबद्ध है । हम नहीं चाहते कि शक्ति और यौवन इन्द्रिय विलास और निजी तथा पारिवारिक स्वार्थों के दायरे में फँसकर कलंक की वस्तु बन जाय । जवानी वह है जो राष्ट्र उत्थान के लिये समर्पित हो । सत्ता का उपयोग भारत की हर गाँव की गली -गली में यौवन का आधारभूत सुविधाओं को पहुँचानें में चरितार्थ होना चाहिये । साफ़ -सुथरा रहना अपने में सभ्य होने का एक शुभ लक्षण है पर उससे भी अधिक शुभ लक्षण है अंतर की सादगी और सफायी । साफ़ -सुथरे रहने का मतलब रंगें सियार की ढोंगबाजी नहीं होना चाहिये । आत्म बल से सम्पन्न व्यक्ति इस बात की परवाह नहीं करता है कि उसका चेहरा Photogenic है या नहीं । उसे इस बात की भी चिन्ता नहीं होती कि हर Appearance पर उसे एक नया सूट पहनना है उसे तो बस एक ही रामधुन लगी रहती है भारत की' माटी'और अधिक उर्वर कैसे हो ?गली -गलियारे और अधिक जगमग कैसे हों ?ग्राम पथ राज पथ कैसे बनें और चिन्तामुक्त सुखद परिवाहन व्यवस्था कैसे स्थापित की जाय ? 'माटी ' के किशोर और तरुण पाठकों को इस दिशा में ही सोचकर आगे बढ़ना है । क्या पता उनकी साधना और उनका चिन्तन उन्हें कल के स्वर्णिम प्रभात का अग्रदूत बना दे ।
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