........................फेथफुल जान की तरह वफादार लक्ष्मण भी पक्षियों की भाषा का ज्ञाता है । राजकुमार और राजकुमारी रथ पर आगे जा रहे हैं । अश्वारोही लक्ष्मण रथ के कुछ पीछे आस- पास सावधानी से देखता हुआ प्रेमी युगल की रक्षा कर रहा है । अचानक एक पेंड की डाल पर बैठे दो उल्लुओं की बातचीत उसके कान में पड़ती है । नर उल्लू मादा उल्लू से कहता है कि राजकुमार और उसकी नवविवाहिता पत्नी पर तीन भयानक खतरे आने वाले हैं । पहला ख़तरा तो अभी कुछ देर बाद आयेगा जब एक बरगद के पेंड की सड़कर गिरने वाली डाल उनके रथ पर गिरेगी । मादा उल्लू पूंछती है कि दूसरा ख़तरा कौन सा आयेगा । नर उल्लू बताता है जब वह अपने नगर से पहले एक मेहराब के नीचे से गुजरेंगे तो वह मेहराब उन पर टूट कर गिरेगी । मादा उल्लू ने आगे तीसरे खतरे के बात जाननी चाही तो नर उल्लू बोला कि उसे आगे साफ़ साफ़ दिखायी नहीं पड़ता मादा उल्लू ने कहा कि वह कोशिश करती है और देखकर बतायेगी फिर कुछ देर की चुप्पी हो गयी फिर मादा उल्लू बोली अरे यह तो एक काला नाग है जो राजकुमारी को काटने के लिये आगे बढ़ रहा है । नर उल्लू ने पूछा कि ऐसा कब और कहाँ होगा ? मादा उल्लू बोली राजकुमार और राजकुमारी यानि राजा और रानी दोनों अपने शयन कक्ष में सो रहे होंगें । वफादार लक्ष्मण बाहर कुछ दूरी पर खड़ा होकर कभी स्फटिक शिला में बैठकर उनकी सुरक्षा में जाग रहा होगा । एक काला नाग शिला के पास के भूतल में छिपे गुफा द्वार से निकलकर शयन कक्ष की ओर बढ़ता है और कपाटों की नीचे की सन्धि से शयन कक्ष में घुस जाता है । रात्रि का तीसरा पहर है । राजकुमार और राजकुमारी प्रणय के बाद गहरी निद्रा में मग्न हैं । यह क्या सर्प ने राजकुमारी के मत्थे पर दंश देने के लिये फन उठाया । पर यह मैं क्या देखती हूँ सजग लक्ष्मण पट खोल कर आ पहुँचा और उसने अपनी कटार से विषधर का सिर अलग कर दिया । पर हाय- हाय विषधर के मुँह की लार के साथ खून का कुछ अंश राजकुमारी के मत्थे पर जा गिरा । पर राजकुमारी अभी भी गहरी निद्रा में है । वह किसी गहरे स्वप्न लोक में डूबी है । नर उल्लू ने कहा तो अब क्या होगा ?मादा उल्लू बोली यदि वफादार लक्ष्मण ने अपने हाथ से विष भरे उस खून को साफ़ करना चाहा तो राजकुमारी जग जायेगी और उसे शक हो जायेगा कि फेथफुल लक्ष्मण के मन में कोई पाप छिपा है । नर उल्लू ने पूछा तो फिर लक्ष्मण को क्या करना चाहिये ? मादा उल्लू ने कहा कि लक्ष्मण राजकुमारी के मत्थे पर रेशम का एक हल्का रूमाल डाल दे और जहाँ पर विष मिश्रित रक्त का बूँद पड़ा है उसे धीरे से अपनी जिव्हा से चाट ले । नर उल्लू ने कहा ऐसा करने में राजकुमारी जग भी तो सकती है । और फिर वफादार लक्ष्मण के मृत्यु की आशंका भी तो है । मादा उल्लू बोली इसके आगे मुझे कुछ दिखायी नहीं देता । अब सब कुछ होनहार पर निर्भर है । अश्वारोही लक्ष्मण ने नर और मादा उल्लू जोड़े की यह सब बातें सुनी और पूरी तरह समझ लीं तीनों खतरों में उसे क्या करना है यह तो उसने जान लिया पर यदि राजकुमारी जग गयी या राजकुमार जग गये तो उस पर क्या शक करेंगें इसे पूरी तरह से समझनें में वह असमर्थ रहा । उसे विश्वास था कि उसके निश्छल व वफादारी के उच्च्तम आदर्श पर राजा (राजकुमार ) को कोई शक नहीं होगा । पर नियति के खेल को कौन जानता है ? उल्लू जोड़े की सारी बातें आदर्श सखा लक्ष्मण ने पेड़ की छाल काट कर बनाये गये एक पट्ट पर लिख लीं अन्त में उसमें लिख दिया कि यदि उस पर राजा को कोई सन्देह हो जाता है तो काल के अधिष्ठाता नरसिंह उसे तुरन्त पत्थर की मूर्ति में बदल दें । यदि विश्व की पवित्र शक्तियाँ उसे पत्थर में नहीं बदलतीं तो पवित्र भावनाओं का सदैव के लिये अन्त हो जायेगा ।
सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा उल्लू जोड़े के बीच बात चीत में बताया गया था । लक्ष्मण ने वटवृक्ष की डाल गिरने से पहले ही अपनी शक्ति के बल पर रास्ते से अलग खींच कर खड़ा कर दिया और उसे दूसरे मार्ग से खींच कर फिर राह पर ले आया । मेहराब के नीचे से गुजरते हुये रथ पर जब मेहराब गिरने को हुयी तो उसने घोड़े पर खड़े होकर अपने हाँथों से मेहराब को तब तक गिरने से रोके रखा जब तक उनका रथ मेहराब के नीचे से निकल नहीं गया और अब तीसरे खतरे की बारी आ गयी । फूलों से सजे सुवासित शयन कक्ष में राजा और रानी के मिलन की अविस्मरणीय रात । स्वर्गीय आनन्द की अनुभूति फिर गहरी निद्रा में स्वप्न संचरण । नियति के प्रतीक के रूप में नागराज का आना ,फन उत्तोलन और कटार से उनका विखंडीकरण । सभी कुछ उल्लू युग्म ने देख लिया था । अब अपने वस्त्र के नीचे से पेंड की छाल की पट्टिका पर लिखी गोलाकार आकृति में लिपटी पाती आदर्श लक्ष्मण ने अपने वस्त्र के नीचे से निकाली और उसे राजकुमार के सिराहने रख दिया । आदर्श लक्ष्मण जानता था कि आगे जो होगा वह नियति के हाथ में है । उसने रेशम की झीनी पट्टिका राजकुमारी के मत्थे पर डाली । विष मिला रक्त पट्टिका के ऊपर उभर कर आ गया । उसे जिव्हाग्र से चाट कर जैसे ही उसने सिर उठाया उसने देखा कि राजा (राजकुमार ) जाग गये है । राजकुमार की आँखों में विस्मय के साथ सन्देह भी था और थी एक भर्त्सना जो लक्ष्मण के ह्रदय को शूल के तरीके भेद गयी । उसने आँखें बंद की और काल पुरुष नरसिंह का स्मरण किया । क्षण मात्र में ही वह खड़ा -खड़ा पत्थर की मूर्ति में बदल गया । लक्ष्मण के चरित्र पर सन्देह करने वाला राजकुमार जिसे राम राजा कहकर पुकार सकते हैं अपने मुँह को दोनों हाथों से ढके सोच में पड़ा था वह सोच रहा था कि क्या लक्ष्मण भी वासना के दलदल में फंसकर मित्र घात कर सकता है ? उसने कुछ प्रश्न आँखें खोलकर लक्ष्मण की ओर फेंके पर कोई उत्तर न मिला । यह क्या लक्ष्मण तो हिलता -डुलता ही नहीं । राम राजा उठे राजकुमारी को उठाया रानी और राजा दोनों ने हाथ का स्पर्श करके पाया कि वहां लक्ष्मण नहीं बल्कि लक्ष्मण की प्रस्तर मूर्ति खड़ी है । अचानक राम राजा की निगाह सिरहाने के पास रखी पाती पर पडी । राजा और रानी दोनों ने ही उल्लू युग्म द्वारा दिये गये खतरे की पूर्व सूचना और उनके निवारण के लिये लक्ष्मण द्वारा किये प्रयत्नों की जानकारी पायी । सब कुछ जानकार राजकुमार और राजकुमारी फूट -फूट कर रो पड़े । हे श्रष्टि के नियन्ता यह हमनें क्या कर डाला । हमें पाप मुक्ति दो । युगों -युगों तक लक्ष्मण की पवित्रता व वफादारी घर -घर में चर्चा का विषय रहेगी पर युगों -युगों तक मुझे प्रायश्चित की अग्नि में जलना पडेगा । प्रस्तर की मूर्ति के चरणों के पास बैठकर राजकुमार और राजकुमारी ने प्रार्थना की मित्र लक्ष्मण मुझे नरक की व्यथा से उबार लो । मेरे क्षणिक सन्देह को युगों -युगों के पश्चाताप में मत बदलो । कुछ अवधि तो निश्चित करो । हे मित्र , हे सखा , हे बन्धु !मुझे मुक्ति का मार्ग तो दिखाओ । आश्चर्यों का आश्चर्य तब हुआ जब मूर्ति ने पलके हिलायी और एक गहरा गडगडाता स्वर निकला जैसे नरसिंह की दहाड़ हो राजन जब आपके और राजकुमारी के संयोग से पहली सन्तान का जन्म होगा और जब वह घुटनों से चलकर मेरा पहला स्पर्श करेगी तब मैं अपनी नर आकृति पा जाऊँगा । इसमें कितना समय लगेगा यह नियति का विधान है और फिर वह दैवी वाणी सपाट सन्नाटे में बदल गयी ।
अब यह "माटी " के पाठकों के हाथ में है कि वे प्रस्तर मूर्ति लक्ष्मण को कब नर काया में बदल दें । दरअसल यह उनके हाथ में नहीं उनकी परिवार योजना की परिधि में आने वाला विचारणीय प्रश्न है । नव दम्पतियों के अलग -अलग उत्तर हो सकते हैं लेखक तो राम राजा और लक्ष्मण सखा की दक्षिण भारतीय कहानी में दिये गये काल प्रसार को ही आप तक पहुँचा कर आपसे आज्ञा लेना चाहेगा ।
आठ वर्ष गुजर गये और तब हँसता मुस्कराता स्वर्ग प्रसून सा एक शिशु रानी की गोद में आया । अभी कुछ समय सीमा और बाकी थी । कुछ पखवारे और कुछ मास और बीते । और फिर उस शयन कक्ष में घुटनों के बल चलकर आनन्द की किलकारी गूँज उठने लगी और एक दिन जब राजा और रानी उसे गोद में उठाने के लिये आगे बढे तो उस दिब्य शिशु में न जाने कहाँ की शक्ति आ गयी । । किलकारी मारता हुआ वह घुटनों के बल तेजी से चल पड़ा और उसने प्रस्तर मूर्ति के चरणों पर अपने दोनों हाथों से स्पर्श किया । एक अद्धभुत घटना घटी , मूर्ति की पलकें हिलीं और क्षण के सतांश में प्रस्तर मूर्ति नर काया में बदल गयी । रक्त स्पन्दन प्रारम्भ हुआ मूर्ति ने झुककर शिशु को हाँथों में उठाया और उसके दिब्य मस्तक पर एक अमिट चुम्बन की छाप लगा दी । "माटी ' के पाठक यह जानना चाहेगें कि फेथफुल जान की जर्मन कहानी में क्या कुछ ऐसा ही घटित होता है जैसा दक्षिणावर्त की भारतीय कहानी में दोनों सभ्यताओं के अन्तर और समानता की चर्चा हम आप तक फिर कभी पहुचायेंगे । आप चाहें तो दक्षिण के इन लक्ष्मण को लक्ष्मण रेखा से भी जोड़कर देख सकते हैं ।
सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा उल्लू जोड़े के बीच बात चीत में बताया गया था । लक्ष्मण ने वटवृक्ष की डाल गिरने से पहले ही अपनी शक्ति के बल पर रास्ते से अलग खींच कर खड़ा कर दिया और उसे दूसरे मार्ग से खींच कर फिर राह पर ले आया । मेहराब के नीचे से गुजरते हुये रथ पर जब मेहराब गिरने को हुयी तो उसने घोड़े पर खड़े होकर अपने हाँथों से मेहराब को तब तक गिरने से रोके रखा जब तक उनका रथ मेहराब के नीचे से निकल नहीं गया और अब तीसरे खतरे की बारी आ गयी । फूलों से सजे सुवासित शयन कक्ष में राजा और रानी के मिलन की अविस्मरणीय रात । स्वर्गीय आनन्द की अनुभूति फिर गहरी निद्रा में स्वप्न संचरण । नियति के प्रतीक के रूप में नागराज का आना ,फन उत्तोलन और कटार से उनका विखंडीकरण । सभी कुछ उल्लू युग्म ने देख लिया था । अब अपने वस्त्र के नीचे से पेंड की छाल की पट्टिका पर लिखी गोलाकार आकृति में लिपटी पाती आदर्श लक्ष्मण ने अपने वस्त्र के नीचे से निकाली और उसे राजकुमार के सिराहने रख दिया । आदर्श लक्ष्मण जानता था कि आगे जो होगा वह नियति के हाथ में है । उसने रेशम की झीनी पट्टिका राजकुमारी के मत्थे पर डाली । विष मिला रक्त पट्टिका के ऊपर उभर कर आ गया । उसे जिव्हाग्र से चाट कर जैसे ही उसने सिर उठाया उसने देखा कि राजा (राजकुमार ) जाग गये है । राजकुमार की आँखों में विस्मय के साथ सन्देह भी था और थी एक भर्त्सना जो लक्ष्मण के ह्रदय को शूल के तरीके भेद गयी । उसने आँखें बंद की और काल पुरुष नरसिंह का स्मरण किया । क्षण मात्र में ही वह खड़ा -खड़ा पत्थर की मूर्ति में बदल गया । लक्ष्मण के चरित्र पर सन्देह करने वाला राजकुमार जिसे राम राजा कहकर पुकार सकते हैं अपने मुँह को दोनों हाथों से ढके सोच में पड़ा था वह सोच रहा था कि क्या लक्ष्मण भी वासना के दलदल में फंसकर मित्र घात कर सकता है ? उसने कुछ प्रश्न आँखें खोलकर लक्ष्मण की ओर फेंके पर कोई उत्तर न मिला । यह क्या लक्ष्मण तो हिलता -डुलता ही नहीं । राम राजा उठे राजकुमारी को उठाया रानी और राजा दोनों ने हाथ का स्पर्श करके पाया कि वहां लक्ष्मण नहीं बल्कि लक्ष्मण की प्रस्तर मूर्ति खड़ी है । अचानक राम राजा की निगाह सिरहाने के पास रखी पाती पर पडी । राजा और रानी दोनों ने ही उल्लू युग्म द्वारा दिये गये खतरे की पूर्व सूचना और उनके निवारण के लिये लक्ष्मण द्वारा किये प्रयत्नों की जानकारी पायी । सब कुछ जानकार राजकुमार और राजकुमारी फूट -फूट कर रो पड़े । हे श्रष्टि के नियन्ता यह हमनें क्या कर डाला । हमें पाप मुक्ति दो । युगों -युगों तक लक्ष्मण की पवित्रता व वफादारी घर -घर में चर्चा का विषय रहेगी पर युगों -युगों तक मुझे प्रायश्चित की अग्नि में जलना पडेगा । प्रस्तर की मूर्ति के चरणों के पास बैठकर राजकुमार और राजकुमारी ने प्रार्थना की मित्र लक्ष्मण मुझे नरक की व्यथा से उबार लो । मेरे क्षणिक सन्देह को युगों -युगों के पश्चाताप में मत बदलो । कुछ अवधि तो निश्चित करो । हे मित्र , हे सखा , हे बन्धु !मुझे मुक्ति का मार्ग तो दिखाओ । आश्चर्यों का आश्चर्य तब हुआ जब मूर्ति ने पलके हिलायी और एक गहरा गडगडाता स्वर निकला जैसे नरसिंह की दहाड़ हो राजन जब आपके और राजकुमारी के संयोग से पहली सन्तान का जन्म होगा और जब वह घुटनों से चलकर मेरा पहला स्पर्श करेगी तब मैं अपनी नर आकृति पा जाऊँगा । इसमें कितना समय लगेगा यह नियति का विधान है और फिर वह दैवी वाणी सपाट सन्नाटे में बदल गयी ।
अब यह "माटी " के पाठकों के हाथ में है कि वे प्रस्तर मूर्ति लक्ष्मण को कब नर काया में बदल दें । दरअसल यह उनके हाथ में नहीं उनकी परिवार योजना की परिधि में आने वाला विचारणीय प्रश्न है । नव दम्पतियों के अलग -अलग उत्तर हो सकते हैं लेखक तो राम राजा और लक्ष्मण सखा की दक्षिण भारतीय कहानी में दिये गये काल प्रसार को ही आप तक पहुँचा कर आपसे आज्ञा लेना चाहेगा ।
आठ वर्ष गुजर गये और तब हँसता मुस्कराता स्वर्ग प्रसून सा एक शिशु रानी की गोद में आया । अभी कुछ समय सीमा और बाकी थी । कुछ पखवारे और कुछ मास और बीते । और फिर उस शयन कक्ष में घुटनों के बल चलकर आनन्द की किलकारी गूँज उठने लगी और एक दिन जब राजा और रानी उसे गोद में उठाने के लिये आगे बढे तो उस दिब्य शिशु में न जाने कहाँ की शक्ति आ गयी । । किलकारी मारता हुआ वह घुटनों के बल तेजी से चल पड़ा और उसने प्रस्तर मूर्ति के चरणों पर अपने दोनों हाथों से स्पर्श किया । एक अद्धभुत घटना घटी , मूर्ति की पलकें हिलीं और क्षण के सतांश में प्रस्तर मूर्ति नर काया में बदल गयी । रक्त स्पन्दन प्रारम्भ हुआ मूर्ति ने झुककर शिशु को हाँथों में उठाया और उसके दिब्य मस्तक पर एक अमिट चुम्बन की छाप लगा दी । "माटी ' के पाठक यह जानना चाहेगें कि फेथफुल जान की जर्मन कहानी में क्या कुछ ऐसा ही घटित होता है जैसा दक्षिणावर्त की भारतीय कहानी में दोनों सभ्यताओं के अन्तर और समानता की चर्चा हम आप तक फिर कभी पहुचायेंगे । आप चाहें तो दक्षिण के इन लक्ष्मण को लक्ष्मण रेखा से भी जोड़कर देख सकते हैं ।
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