Monday, 21 March 2016

                            ............ स्वच्छंद होने लगे थे । नियम टूट रहे थे । पवित्र मर्यादायें टूटती जा रही थीं । काष्ठ घर्षण के द्वारा चन्दन की रगड़ के द्वारा अग्नि उत्पन्न करने की तकनीक खोजने वाले जमदग्नि जैसे मनीषी स्वच्छंद अतिचारियों से जिन्हे राजा के नाम से अभिहित किया जाने लगा था अपने को अपमानित महसूस कर रहे थे । जमदग्नि नें अपने पुत्र परशुराम को शस्त्र और शास्त्र मनन और चिन्तन सभी में अपनें युग का सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता बनाकर उन्हें दूर अन्तर उपलब्धि का मार्ग खोजने के लिये प्रस्थानित  दिया था । परशुधर की माँ रेणुका अपनी बढ़ती उम्र में भी अपनें नारी सौन्दर्य और शालीन आचरण के लिये निकट के सभी उपनिवेशों में चर्चित हो रही थी । हजारों भुजायें फैलाये अनाचार पवित्रता के प्रबल प्रवाह को स्तंभित कर रहा था । इतिहास के पर्दे के पीछे ऐसा कुछ घटित होना था जो मानव चिन्तन को एक नया मोड़ दे और ऐश्वर्य या शक्ति को इन्द्रिय सुख से न जोड़ कर मानव कल्याण की ओर उन्मुख करे । अतीत की इन रहस्य भरी कोहिलकाओं में' माटी' आपको शीघ्र ही विचरण करायेगी । 

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