Sunday, 14 December 2014

Mati ke......

                                 ' माटी ' के एक सुधी पाठक ज्ञान रंजन वशिष्ठ द्वारा प्रेषित एक पत्र अपने में कुछ विचारणीय सुझाव समेटे हुये है। पत्र को अपनी सम्पूर्णत : में नीचे उद्धत कर हम उसमें दिये गये सुझावों के मस्तिष्क के वैचारिक तन्त्र जाल में उपजी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा करेंगें । अपनी समग्रता : और बहु विविधता के परिप्रेक्ष्य में निरखी -पारखी इन प्रतिक्रियाओं से हम 'माटी ' में प्रकाशित होने वाली रचनाओं की  चयन प्रक्रिया को और अधिक सारगर्भित करने का प्रयास करेंगें ।
              आदरणीय सम्पादक महोदय,
                                                        मेरा नमन स्वीकार करें । माटी पत्रिका के स्थायी स्तम्भ मन को छूते ,कुरेदते ,उत्साहित और उद्वेलित करनें में प्रभावशाली ढंग से समर्थ हैं । अन्य लेख और प्रकाशित कवितायें भी विचारोत्तेजक होने के साथ साथ भाव प्रमाण भी हैं। सब मिलाकर माटी एक निश्चित ऊर्ध्वगामी जीवन दर्शन की पत्रिका कही जाने का गौरव प्राप्त करने की अधिकारणी है । पर मैं यह चाहूँगा कि आप अपनी पत्रिका में एक स्तम्भ फिल्म जगत  की श्रेष्ठ ,उद्भोदक और मौलिक उदभावना वाले चल चित्रों की विवेचना के लिये भी सुनिश्चित करें । इसके साथ ही दो तीन छोटे छोटे कॉलम्स में बटा हुआ एक स्तम्भ क्रीड़ा जगत के लिये भी सुनिश्चित करें। सिने जगत के कुछ अच्छे फनकारों और क्रीड़ा जगत के कुछ अच्छे महारथियों पर भी थोड़ा बहुत प्रकाश डाल  कर माटी के पाठकों को एक विवेक पूर्ण चयन दृष्टि से संस्कारित होने का सुअवसर प्रदान करें । तरुण पीढ़ी इन दोनों क्षेत्रो में गहरी दिलचस्पी रखती है। और हमारा आज का भारत 70 % तरुणों का ऊर्जावान गगन मुखी भारत है। आप स्वयं ही नीर -क्षीर बुद्धि से संपन्न हैं। आप द्वारा चयनित ,विवेचित ,स्फूर्तिपूर्ण कला और क्रीड़ा की स्मरणीय घटनायें निश्चय ही नयी पीढ़ी के लिये सोच की एक नयी दिशा दे सकेंगीं।
                     आदर के साथ
                                              आपका अपना 'माटी 'का एक सामान्य पाठक ।
                         
             ज्ञान रंजन वशिष्ठ के इस पत्र में निहित उनके सुझावों में मुझे तरुण पीढ़ी के मनोवैज्ञानिक जगत में झाकने का एक सुअवसर मिला है । 'माटी ' अभी तक फिल्म और खेल चर्चा से इसलिये बचती रही है क्योंकि यह दोनों क्षेत्र न केवल काले धन के निवेश स्थल बन गये है बल्कि उनमें एकाध अपवादों को छोड़ कर अधिकतर मानव मन की ऊर्ध्वगामी प्रकृतियों का समुचित समावेश देखने को नहीं मिलता पर इसमें कोई शक नहीं कि फिल्म जगत की कुछ श्रष्टियाँ कुछ गहरा प्रभाव दर्शक के मन पर छोड़ती हैं। और खेलों का उल्लास भी सामान्य जन जीवन की विषमताओं को कुछ अँश कम करने में सक्षम दिखायी पड़ता है।
                '  माटी ' प्रयास करेगी कि फिल्म और क्रीड़ा जगत की उल्लेखनीय उपलब्धियों पर सार्थक चर्चा की जाय। अगले अंकों में अपने पाठकों से प्रोत्साहन पाकर हम इस दिशा में कुछ नये स्तम्भ प्रकाशित कर सकेंगें । दिसम्बर 2014 का 'माटी ' का यह अँक सात वर्ष तक निरन्तरता के साथ अपने प्रकाशन की प्रतिबद्धता को समर्पित है । 'माटी ' के रचनाकारों नें हमें जो सहयोग दिया है वह अमूल्य है और हम आदर के साथ उनका आभार स्वीकार करते है। हम इस दिशा में भी प्रयत्न कर रहे हैं कि 'माटी ' का अपना एक स्वतन्त्र केन्द्रीय समागम स्थल हो जहाँ प्रत्येक मास किसी सुनिश्चित दिवस पर 'माटी ' परिवार का सौहाद्र पूर्ण संवाद सम्भाषण परिचय और प्रीति मिलन आयोजित किया जा सके । हम जानते हैं शब्द शिल्पियों के लिये ठोस धरती पर आकृतियाँ खड़ा करना एक दुष्कर कार्य होता है पर जब मार्ग लक्षित दिशा की ओर सुनिश्चित हो जाता है तो उपलब्धि की अनिवार्यता भी समाज की संरचना ही सुनिश्चित करती है।
                                    तो आइये हम कामना करें कि अपने आठवें वर्ष में अवाध उत्कर्ष की अपराजेय  प्रेरणा ही 'माटी ' की प्रतिबद्धता बने।' माटी ' का सम्पादक ,सम्पादकीय परिवार इस संकल्प की पावनता के प्रति मुक्त भाव से समर्पित है। हाँ हमारे प्रबुद्ध पाठक भी सम्पादकीय परिवार का ही एक अभिन्न अँग हैं क्योंकि उन्ही की की हुयी तराश से हम अभिव्यंजना की गहरी काट करने वाली चर्चित ,उपचर्चित विधाओं को रूपायित करने में समर्थ होते हैं ।
                                                

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