Thursday, 17 July 2014

केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में...........

                                               केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में मानव संसाधन विभाग को नयी गुणवत्ता से भरपूर करने की जिम्मेवारी स्मृति ईरानी जी की देख-रेख में आ गयी है । तुलसी के नाटकीय रूप में उनकी छवि नें एक गहरा प्रभाव छोड़ा था पर भारतीय राजनीति का एक सबसे दुर्बल पहलू है व्यक्तिगत आक्षेपों की गोलीबारी । उनकी शैक्षिक योग्यता को लेकर कई प्रश्न उठाये गये ऐसा लगता हैं कि अपने  सम्बन्धों में दिये गये प्रतिलेखों में थोड़ी बहुत असावधानी उन्होंने अवश्य दिखाई होगी अन्यथा आरोपों की व्यर्थता अपने आप ही सिद्ध हो जाती पर इस बात में भी सच्चाई है कि शिक्षा मन्त्री  का आंकलन विश्वविद्यालीय डिग्रियों के आधार पर नहीं होना चाहिए । प्रतिभा डिग्रियों में बँधकर नहीं बैठती । संसार के न जाने कितने जाने -माने प्रशासक अधिक शिक्षित नहीं थे फिर भी आधुनिक काल में शिक्षा की तकनीक , उसका विस्तारण और उसकी  वेधता प्रतिभा के साथ -साथ कड़े परिश्रम की माँग करती है । स्मृति ईरानी जी में इन विशिष्टताओं का अच्छा -खासा समिश्रण देखने को मिलता है। शिक्षा पर आधिकारिक चर्चा करना विद्वानों का विषय है। मैं अपने को इसका हकदार नहीं मानता। हाँ इतना अवश्य है कि किसी भी प्रभाव शाली परिवर्तन के लिए प्राइमरी  और मिडिल  स्कूल की शिक्षा में आमूल -चूल परिवर्तन की आवश्यकता है।

                                      किसी भी नर -नारी के व्यक्तित्व के विकास की नींव शिक्षा के पहले आठ -दस वर्षों में पड़ जाती है। पक्की नींव पर ही सुदृढ़ निर्माण किये जा सकते हैं । अभी हाल में दिल्ली यूनिवर्सिटी के चार वर्षीय स्नातक प्रोग्राम को लेकर काफी चहल -पहल रही है आखिरकार यू.जी .सी . के चेयरमैन वेद प्रकाश जी नें आर्थिक डंडा चलाकर चार वर्षीय कोर्स को तीन वर्षीय कोर्स में परिवर्तित करा ही दिया। इस परिवर्तन के पीछे गुणवत्ता को बढ़ाने का कोई आधार था या नहीं यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। चार वर्ष के कोर्स की अपनी एक तकनीक थी और उसके बाद शिक्षा के लिए विदेश गमन का मार्ग खुलता दिखाई पड़ता था पर तीन वर्षीय स्नातकीय कोर्स में भी बहुत कुछ करके दिखाया जा सकता है । न जाने क्यों मेरी यह धारणा बन गयी है कि आज -कल का विद्यार्थी ग्रेजुएट हो जाने पर भी कम्प्यूटर और लेपटाप की टिप -टॉप के बजाय बहुत सारे ज्ञान से वंचित हो जाता है । शिक्षा को सर्वांगीण और बहु आयामी होना चाहिए। विज्ञान के स्नातक को मानवकीय से बिना रूबरू हुए मानव सभ्यता का पूरा ज्ञान नहीं हो सकता इसी प्रकार कला स्नातक को विज्ञान के आधार के बिना बौद्धिक विवेचना की क्षमता लगभग शून्य हो जाती है। स्मृति ईरानी जी नें अभी पारी की शुरुवात की है । मध्य प्रदेश के एक स्कूल में उन्होंने छात्रों के सम्मुख बोलते हुए कहा कि वे इसलिए जीवित हैं कि माँ नें उन्हें मरनेँ से बचा लिया। आस -पास के बहुत से लोग लड़की को घर का बोझा बताते थे और अगर वह बीमार होकर मर जाय तो इसे अधिक दुःख की बात नहीं मानते थे । जाहिर है कि वह मातृत्व के गौरव को बढ़ाना चाहती हैं और चाहती हैं कि हर नारी शिक्षित हो+ उन्होंने छात्रों को यह भी बताया कि वे मध्य वर्ग से भी नीचे वर्ग में जन्मीं थीं और वे जो कुछ भी बन पायी हैं अपनें परिश्रम के बल पर बन पायीं हैं। लगता है स्मृति जी सच मुच शिक्षा जगत में कुछ कर दिखाने की इच्छा रखती हैं। ईश्वर करे वह दिन फिर आ जाय जब योरोप और अमरीका के विद्यार्थी भारत में शिक्षा लेने के लिए बेचैन हो उठें। सच्ची शिक्षा आदमी को हर दुराग्रहों से मुक्त करती है। उसे सच्चा विश्व मानव बनाती है। स्मृति ईरानी जी के लिए यह परीक्षा की घड़ी है आने वाला समय ही बतायेगा कि उन्होंने अपने आदर्शों को कितनी सफलता के साथ ठोस धरातल पर स्थापित किया है । शिक्षा में ही देश का भविष्य है और संभवत : प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी नें एक सधे हुए सारथी के हाथ में शिक्षा रथ की बागडोर थमा दी है।  प्रभु करे कि विजय की माला के  सारथी के रूप में उसका अधिकार बन जाय ।
                                                                      
                                     

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