Wednesday, 17 April 2013

अमीर खुसरो की पहेली

                                                                     अमीर खुसरो की पहेली

                    एंजेल्स ने कहा है कि स्रष्टि में कहीं कुछ ऐसा नहीं होता है जो सुनियोजित न हो और जिसका कोई अन्तिम लक्ष्य निर्धारित न हो पर सामान्य मनुष्य के जीवनमें बहुत बार ऐसा होता है जब किसी घटना के पीछे न तो कोई योजना जान पड़ती है और न ही उस घटना के अन्तिम परिणाम को पूर्व निर्धारित माना जा सकता है। बुद्धि परक सारी व्याख्यायें घटना के आस -पास चक्कर लगाकर चुप होकर बैठ जाती हैं और रहस्य का एक अभेद्य पर्दा उस घटना को अपने में ढके रहता है। भारत वर्ष के योगियों ,सिद्धियों और तांत्रिकों का इतिहास तो चमत्कारों के आस -पास ही घूमता रहता है। हाँ सनातन धर्मी साधु और महात्मां कई बार चमत्कारों से दूर हटकर परमतत्त्व की उपलाब्धि पर जोर देते दिखायी देते हैं। मेरे मित्र नन्द किशोर पाण्डेय एक गम्भीर प्रकृति   के विद्वान हैं और एक प्रतिष्ठित माध्यमिक विद्यालय में भौतिकी के प्रवक्ता हैं। मानव जीवन में सभी  कुछ पूर्व निर्धारित नियति के आधार पर घटित होता है। ऐसी मान्यता भारत की एक दार्शनिक विचारधारा में व्यापक रूप से स्वीकार की गयी है। भौतिकी के व्याख्याता होने के नाते वे इस विश्वाश को कई प्रश्न चिन्हों के साथ लगाकर तौलते थे। विश्वाश और अविश्वाश के बीच में वे उस दुविधावादी मनस्थिति में रहते  थे जो प्राय : सभी उच्च वर्गीय आस्तिक घरों की धरोहर है। बातों ही बातों में एक दिन वे कह बैठे कि उच्च आचारी सन्त पुरुष अपनी म्रत्यु को और उसके निर्धारित समय को पहले से ही जान जाता है। यही नहीं उसे म्रत्यु ,बीमारी ,दुर्घटना या किसी प्रकृति जन्य आपदा के कारण उन तक आयेगी इस बात का भी उन्हें पहले से ही पता चल जाता है। स्वाभाविक है उनके कुछ साथी जिनमें मैं भी एक था उनकी इस मान्यता को स्वीकार करने में हिचकिचा रहे थे। अपनी बात की पुष्टि करने के लिये उन्होंने जिस घटना का वर्णन किया उसे हम नीचे शब्दवद्ध कर रहें हैं।
                       भौतिकी का व्याख्याता उस घटना के रहस्य को सुलझा नहीं पाया था। हमारे पाठकों में से यदि कोई तर्क संगत समाधान देना चाहे तो हम उसे माटी में प्रसारित करने के लिये तैयार रहेंगे। नन्द किशोर जी का सबसे पहला एप्वाइंटमेन्ट फर्रुखाबाद और कासगंज के बीच में स्थित पटियाली के इण्टर कालेज में हुआ था। हमारे प्रबुद्ध पाठक जानते ही हैं कि पटियाली प्रसिद्ध फारसी विद्वान और हिन्दी कवि अमीर खुसरो का जन्म स्थान है। हिन्दी के प्रारम्भिक काल में इतनी सरल और मनोरंजक पहेलियाँ लिखने वाला कोई दूसरा कवि या विद्वान हमें कहीं दिखायी नहीं पड़ता। अमीर खुसरो की पहेली की एक बानगी देखिये।
                                             " एक थाल मोती से भरा
                                                सबके सिर पर औंधा धरा
                                                थाल वह चारो ओर फिरे
                                                मोती उससे एक न गिरे "
                 पहेली का हल तो आप सब जानते ही हैं । दरअसल पटियाली कस्बे की महत्ता को उजागर करने के लिये अमीर खसरो को इस प्रसंग से जोड़ दिया गया है अन्यथा वर्णित घटना से उनका और कोई सम्बन्ध नहीं है। पाण्डेय जी कस्बे में किराये के लिये कमरे की तलाश कर रहे थे। प्राचार्य लीलाधर नें उन्हें कस्बे के उत्तरी कोने पर रहने वाले जोगी बाबा से सम्पर्क करने को  कहा  और बताया कि जोगी बाबा के पास एक ३० x 20  का पक्का कमरा है जिसमें कोई लेक्चरर यदि वे शादीशुदा नहीं हैं रह सकते हैं। खाने के लिये इण्टर कालेज के पास एक होटल की व्यवस्था थी ही दूध और चाय के लिये स्टोब का इन्तजाम किया जा सकता था। ये बातें उन दिनों की हैं जब भारतवर्ष में गैस का प्रवेश नहीं हुआ था और चूल्हे अंगीठी से ऊपर उठकर स्टोब तक की ऊँचाई छुई जा सकी थी। आज के सन्दर्भ में गैस के चूल्हे के बिना   रिहाइश की कल्पना भी नहीं की जा सकती है पर मुझे ख्याल है कि सन ८ ५ के आसपास जब गैस का चूल्हा चला तो न जाने कितने माध्यम घरों की  हिन्दुस्तानी नारियाँ सिलिन्डर फट जाए के डर से गैस बुक नहीं कराती थीं। कुछ वर्षों के बाद गैस का होना भी मध्यम वर्ग के लिये एक स्टेटस सिम्बल बन गया। खैर तो नन्द किशोर जी ने जोगी बाबाजी  से सम्पर्क किया और रसायन शास्त्र के प्रवक्ता नरेन्द्र पाल और जैवकीय के प्रवक्ता अरविन्द शुक्ल के साथ जोगी बाबा के कमरे में डट गये। तीनो ही तरुण थे ,अविवाहित थे और अपने अध्यापन कैरियर के शुरुआती दौर से गुजर रहे थे। जोगी बाबा का पुराना मकान कमरे से सटा  हुआ था। जिसमें उनके दो पुत्र अपनी पत्नियों के साथ और लगभग आधा दर्ज़न संतानों के साथ रह रहे थे। जोगी बाबा के पास काफी जमीन थी और उनके दोनों पुत्र संपन्न जमीदारों में माने जाते थे। गन्ने और आलू की फसलें उन्हें जीवन यापन की पर्याप्त सुख सुविधायें प्रदान कर रहीं थीं । जोगी बाबा नें भगवा वस्त्र धारण कर लिया था। शुभ्र दाढ़ी और खड़ाऊं में वे एक भब्य वृद्ध सन्यासी दिखाई पड़ते थे। हम लोगों के लिये कमरे से थोड़ी दूर हट कर शौचालय का प्रावधान था और जोगी बाबा के बहुओं और बच्चों के लिये पुराने घर के भीतर शौच आदि का प्रबन्ध किया गया था। पुराना मकान भी काफी लम्बे चौड़े क्षेत्र में फैला था।। जोगी बाबा ने अपने लिये घर से बाहर झाड़ियों भरे एक खण्डहर में शौचालय का प्रबन्ध कर रखा था। प्रत्येक सुबह चार बजे के आसपास उनकी खड़ाऊंओं की चटक हमें बता देती थी कि प्रभात का आगमन होने वाला है। कुछ महीनों के बाद एक दिन हम लोगों को सुननें में आया कि जोगी बाबा के सामने उनके अन्तिम प्रयाण का सन्देश आ गया है। वे अस्सी से ऊपर हो रहे थे पर फिर भी हम सब चाहते थे कि वे एक डेढ़ दशक और जीकर नयी पीढ़ी को उत्साहित करते रहते क्या हुआ यह जानने के लिये पाण्डेय जी ने जोगी बाबा को आदरपूर्वक तीनों के बीच बुलाया। बाबा नें बताया कि कल सुबह जब वे अँधेरे में शौचालय की ओर बढ़े तो रास्ते में एक भयावह सर्प फन उठाकर खड़ा हो गया। बाबा ने हाथ जोड़कर उसे नमस्कार किया और कहा कि नागराज आज शुक्ल पक्ष की अष्टमी है मुझे सात दिन का मौक़ा और दो और पूर्णमासी की प्रभात को तुम आकर मुझे डस  लेना। मैं जानता हूँ तुम त्रिलोचन सदाशिव के दूत हो और मुझे लेने के लिये आये हो। इतना सुनने के बाद उस विषधर नें अपने फन को नीचा कर लिया और घूमकर वापस कहीं झाड़ियों में विलीन हो गया। अष्टमी को यह घटना घटी थी और दशमी को यह बात हम तीनों को बतायी। पटियाली कस्बे के हर घर में इस होनी की सूचना पहुँच चुकी थी और सभी मान रहे थे कि जोगी बाबा एक पहुँचे हुये सन्त हैं और उनका कहा हुआ एक एक शब्द अमिट सत्य है। अभी पूर्णमासी के पाँच दिन शेष थे जैवकीय के प्रोफेसर शुक्ला सर्प से की गयी मुलाक़ात को केवल एक संयोग मानते थे और कहते थे कि जोगीबाबा भ्रम के आबद्ध में फंस गये हैं। पर पूरा कस्बा पूर्णमासी के प्रभात की प्रतीक्षा कर रहा था। चार बजे खडाऊं के खटकने की आवाज आयी और हाथ में लोटा लिये जोगी बाबा शौचालय की ओर बढ़ते दिखायी दिये। लगभग दस मिनट बाद शौचालय से जय सदा शिव ,जय शिव ,जय सदाशिव ,जय कैलाशपति की आवाज आयी। उनके पुत्र और पौत्र और हम तीनो ने दौड़ कर शौचालय तक पहुँचने की कोशिश की तो देखा कि एक सात ,आठ फुट का काला साँप शौचालय से निकलकर झाड़ियों की ओर जा रहा था। बाबा लडखडाते हुये शौचालय से बाहर आये उनके हाथ का लोटा शौचालय में ही पड़ा था। उन्होंने अपने दाँयें पैर के पंजे की ओर इशारा किया और हम सबने देखा कि सांप के काटने का त्रिमुखी घाव उस स्थान को नीला कर रहा था। उन्होंने अपने पुत्रों से कहा कि उनके उपचार का कोई प्रयास न किया जाय उन्हें शिव धाम जाना है। वे लडखडाते क़दमों से चल कर घर के बाहर पड़े एक लम्बे चौड़े तख़्त पर लेट गये उनके पुत्र ,पौत्रों नें उनके सिर के नीचे सराहना लगा दिया। हम तीनों व्याख्याताओं ने डाक्टरी उपचार की बात कही लेकिन मूक रहकर जोगी बाबा नें सिर हिलाकर ऐसा करने से मना किया। इतने में कुछ लोग मंत्रोचार करके विष उतारने वाले गाँव के एक ओझा को बुला लाये कस्बे के हर घर से बाहर निकल कर जोगी बाबा के घर पर इकट्ठी हुई भीड़ सैकड़ों की संख्या पार कर रही थी हम तीनों ने तो कुछ नहीं देखा पर घरों से चल कर आने वाले कुछ सज्जनों ने बताया कि रास्ते में एक सर्प फन उठाये खड़ा था। ज्यों -ज्यों मन्त्रोचार होता था वह अपना फन उठाकर हिलाता -डुलाता था मानो कह रहा हो नहीं यह काल का सन्देशा है और जोगी बाबा को जाना ही पड़ेगा। दिब्य कैलाश पर उनके आगमन पर स्वागत की तैय्यारी हो चुकी है। सदाशिव चाहते हैं कि मन्त्र का कोई असर सर्प पर न हो। उन लोगों की बातें सुनकर उनका विरोध करने का साहस हममें नहीं रहा क्योंकि भीड़ का हर व्यक्ति जोगी बाबा के दिब्य प्रयाण की प्रशंशा कर रहा था। चारों तरफ आवाजें आ रहीं थीं कि जोगी बाबा एक दिब्य सन्त हैं और उन्हें अपनी म्रत्यु का और म्रत्यु के कारण का पूर्व ज्ञान हो चुका था। उपचार तो एक छलावा  होगा शोक का नहीं उल्लास का समय है। धीरे -धीरे जोगी बाबा का सारा शरीर नीला पड़ गया। ठीक प्रात : आठ बजे उन्होंने जै सदाशिव कहकर अन्तिम सांस ली और सदा के लिये यह संसार छोड़ कर चले गये। हम तीनों नें अर्थी में कंधा देकर अपने को धन्य समझा पर जैवकीय के व्याख्याता शुक्ल जी जब विश्वविद्द्यालय के अपने सीनियर से मिले तो उन्होंने शुक्ला जी को  Peddler of Superstition कहकर संबोधित किया। हम अपने विज्ञ पाठकों से इस घटना के सम्बन्ध में प्रतिक्रया जानना चाहेंगे।

           
                                            

No comments:

Post a Comment